Raksha Bandhan 2023: क्यों मनाया जाता है रक्षा बंधन, इतिहास, महत्व, कथाएं, तिथि

Raksha Bandhan 2023
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Raksha Bandhan 2023: हम सब जानते हैं की रक्षा बंधन हमारे देश के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। सारे देश में इस त्योहार को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ साथ, बड़ी धूमधाम और हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है।

लोग कई कई दिन पहले ही इस त्योहार की तैयारियों में जुट जाते हैं। बाजार रंग-बिंरगी राखियों और तरह तरह की मिठाइयों से सज जाते हैं। बहने अपने भाइयों के लिए खूबसूरत राखियों की खोज में लग जाती हैं और भाई अपनी बहनो को देने के लिए खूबसूरत उपहार ढूंढने लगते हैं। यह सब तो हम जानते ही हैं।

पर आप में से बहुत कम लोग ये जानते होंगे की यह त्योहार क्यों मनाया जाता है, इस त्योहार का इतिहास क्या है। इस लेख में हम रक्षा बंधन के इतिहास, इसके महत्व और इस से जुड़ी प्राचीन कथाओं के बारे में जानेंगे।

रक्षा बंधन का महत्व (Raksha Bandhan 2023)

रक्षा बंधन हमारी संस्कृति से जुड़ा हुआ एक बहुत ही प्राचीन त्योहार है, जो भाई बहिन के पवित्र रिश्ते के प्यार, विश्वास और उनके बीच के सम्मान को दर्शाता है। इस त्यौहार को अलग अलग राज्यों और क्षेत्रों में अलग अलग तरह मनाया जाता है, पर धागे का बंधन हर रीति रिवाज़ में शामिल होता है।

इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बांध कर उसकी लम्बी उम्र और समृद्ध जीवन की कामना करती हैं।। और बदले में भाई भी अपनी बहन की हमेशा रक्षा करने तथा सुख दुःख में उसके साथ खड़े होने का वादा करता है। यही खूबसूरती है रक्षा बंधन के इस त्योहार की, जो हर साल भाई बहन के रिश्ते को नयी मजबूती देता है।

रक्षा बंधन को और किन किन नामो से जाना जाता है

त्यौहार भले एक है पर अलग अलग क्षेत्रों में इसे अलग अलग रीति रिवाज़ों से मनाया जाता है। इसलिए रक्षा बंधन के इस पर्व को अलग अलग नामों से भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में रक्षा बंधन को गुरु महापूर्णिमा, दक्षिण भारत में नारियल पूर्णिमा और नेपाल में इसे ‘जनेऊ पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है। इसी तरह पंजाब में इसे रखड़ी और हरयाणा में राखी भी कहा जाता है। रक्षा बंधन के इस पर्व को भारत के कई हिस्सों में श्रावणी के नाम से जाना जाता है।

कब मनाया जाता है रक्षा बंधन (Raksha Bandhan 2023)

रक्षा बंधन का त्योहार हर साल सावन के महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। क्योंकि यह त्योहार वर्षा ऋतु में आता है, इसलिए इस त्योहार का अर्थ और भी गहरा हो जाता है। जिस प्रकार वर्षा ऋतु समृद्धि और खुशहाली का सन्देश ले कर आती है, उसी प्रकार रक्षा बंधन का त्योहार भाई बहन के रिश्ते में और भी प्यार और विश्वास प्रतीक बन कर आता है।

रक्षा बंधन का इतिहास (Raksha Bandhan 2023)

रक्षा बंधन हमारे देश का बहुत ही प्राचीन त्यौहार है। इस त्यौहार को मनाये जाने के संबंध में अनेक पौराणिक एवं ऐतिहासिक प्रसंगों का उल्लेख मिलता है। आइये इनके बारे में जानते हैं:

कृष्ण और द्रोपदी प्रसंग

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार पांडवो ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया, जिसमे भगवान श्री कृष्ण और उनके फूफेरे भाई शिशुपाल भी आमंत्रित थे। यज्ञ के दौरान शिशुपाल ने भगवान कृष्ण को बड़ा अपमानित किया। शिशुपाल बड़ा पापी इंसान था, जिसके पापों का घड़ा भर चूका था।

उसका अंत करने के लिए भगवान् कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा। लेकिन उसका सर काटने के बाद, जब चक्र भगवान् श्री कृष्णा के पास लौटा तो उनकी एक ऊँगली में घाव हो गया। जिस से रक्त बहने लगा। यह देख द्रौपदी ने अपनी साधी का पल्लू फाड़ कर उनके घाव पर पट्टी की।

द्रौपदी का यह प्यार देख कर, भगवन श्री कृष्ण ने उसे हमेशा उसकी रक्षा करने का वचन दिया। अपने इस वचन को निभाते हुए, भगवन कृष्ण ने द्रौपदी चीरहरण के समय उनकी रक्षा की। इस प्रेम भरी कथा से प्रेरित होकर, भाई-बहन रक्षा बंधन को मनाते हैं।

देवराज इंद्र और सची प्रसंग

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब असुरों के राजा बलि ने देवराज इंद्र पर हमला कर दिया, तो इंद्र देव काफी व्याकुल हो उठे। वो पहले भी राजा बलि से युद्ध में परास्त हो चुके थे। अपने पति की व्याकुलता को देख उनकी पत्नी सची ने भगवान् विष्णु की कठोर तपस्या की । और उनके वरदान से एक रक्षासूत्र तैयार किया, जिसे सची युद्ध से पहले अपने पति देवराज इंद्र की कलाई पर बाँध दिया। उस युद्ध में इंद्र की जीत हुई थी। यही वजह है कि पुराने समय में युद्ध में जाने से पहले बहनें और पत्नियां अपने भाइयों और पति को रक्षा सूत्र बांधती हैं।

भगवान विष्णु और लक्ष्मी प्रसंग

एक उल्लेख यह भी है कि भगवान विष्णु ब्राह्मण का वेश धर कर असुरों के राजा बलि के पास गए और उन से तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि ने इस मांग को स्वीकार किया तो ब्राह्मण ने पहले ही पग में पूरी पृथ्वी को नाप लिया। जिसे देख कर बलि समझ गया की यह कोई ब्राह्मण नहीं, बल्कि स्वयं भगवन विष्णु हैं।

और फिर उसने भगवान विष्णु के अगले पग के आगे अपना शीश रख दिया। जिसे देख भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और बलि को वर मांगने के लिए कहा। बलि ने वर के रूप में भगवान विष्णु को अपना द्वारपाल बनने के लिए कहा। इस प्रकार भगवान विष्णु अपने ही जाल में फंस गए।

जब इस बात का पता भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी जी को चला, तो उन्होंने बलि की कलाई पर धागा बांध उन्हें अपना भाई बना लिया और उपहार के रूप में विष्णु भगवान को वापिस माँगा था।

महारानी कर्मावती और हुमायु का प्रसंग

रक्षा बंधन के सन्दर्भ में चित्तौड़ की महारानी कर्मावती का प्रसंग भी काफी मह्त्वपूर्ण माना जाता है। जिसके अनुसार एक बार बार गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर अकर्मण कर दिया, तो महारानी कर्मावती ने बादशाह हुमायु को राखी भेज कर अपने राज्य की रक्षा करने का आग्रह किया।

उसके इस प्यार और विश्वास को देख हुमायु ने उसकी मदद करने के लिए अपनी सेना के साथ चित्तौड़ की और कूच कर दिया। पर वहां पहुंच कर उसे पता चला कि महारानी कर्मावती पहले ही अपनी इज्ज़त कि रक्षा करती करती अग्नि को आहुति दे चुकी हैं। ऐसे में हुमायु ने उसकी चिता की राख का तिलक लगा कर अपनी बहन के प्रति अपने कर्त्तव्य का निर्वाह किया। इस घटने के बाद ही यह परंपरा बनी की जब कोई महिला किसी पुरुष को राखी बांधती है तो वोह उसका भाई मन जायेगा।

रक्षा बंधन का मध्यकालीन इतिहास

  • मध्यकालीन युग भी ऐसे प्रसंगों से भरा पड़ा है जब राजपूत योद्धाओं के युद्ध पर जाने से पहले राज्य की बेटियां उनकी आरती उतार कर कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधा करती थीं। और वीररस गा कर उन से अपनी और अपने राज्य की रक्षा का प्राण लेती थी।
  • कहा जाता है की उस ज़माने में ज्यादातर मुस्लिम शासक हिंदू युवतियों का बलपूर्वक अपहरण करके, उन्हें अपने हरम की शोभा बढ़ाने के प्रयास में रहते थे। तो ऐसे में राजपूत कन्यायें बल शाली मुस्लिम शासकों को राखी भेज कर अपनी रक्षा किया करतीं थी। इसी परंपरा के बाद रक्षा बंधन का प्रचलन बढ़ा था।

ऐसी और भी अनेको कथाएं और कहानियां हैं, जिनसे रक्षा बंधन के महत्व और प्राचीन इतिहास के बारे में जानने को मिलता है।

रक्षा बंधन 2023 की तिथि | Raksha Bandhan 2023 Date

Raksha Bandhan 2023: इस साल भी रक्षा बंधन पर भद्रा का का साया रहेगा। और भद्रा समय में किसी भी शुभ कार्य को करना अशुभ माना जाता है। इसलिए भद्रा काल का ध्यान रखना जरूरी है। जो इस प्रकार है:

Raksha Bandhan 2023 Date – 30 अगस्त

शुभ समय: सुबह: 11:42 से 11:59 मिनट तक, रात: 9:02 से 10:13 मिनट तक

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ISSE BHI PADHEN: गुरु पूर्णिमा का दिन क्यों मनाया जाता है?

FAQs

रक्षाबंधन कौन से महीने में है?

हिन्दू पचांग के अनुसार, रक्षा बंधन का त्यौहार हर साल सावन के महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

हिन्दू पचांग के अनुसार, रक्षा बंधन का त्यौहार हर साल सावन के महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस बार अर्थात Raksha Bandhan 2023 में पूर्णिमा तिथि दो दिन तक रहेगी, 30 और 31 अगस्त को।

इस साल भी रक्षा बंधन पर भद्रा का का साया रहेगा। और भद्रा समय में किसी भी शुभ कार्य को करना अशुभ माना जाता है। इसलिए भद्रा काल का ध्यान रखना जरूरी है।

रछा बंधन कब है 2024?

2024 में रक्षा बंधन 19 अगस्त, सोमवार के दिन आता है।

रक्षा बंधन कहां है?

रक्षा बंधन एक प्राचीन भारतीय त्यौहार है। जो भाई बहन के प्यार, विश्वास और सम्मान के लिए, हर साल सावन के महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। दुनिआ में जहाँ भी भारत के लोग रहते हैं, ये त्यौहार वहां वहां मनाया जाता है।

रक्षा बंधन का दूसरा नाम क्या है?

अलग अलग क्षेत्रों में रक्षा बंधन अलग अलग रीति रिवाज़ों से मनाया जाता है। इसलिए रक्षा बंधन के इस पर्व को अलग अलग नामों से भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में रक्षा बंधन को गुरु महापूर्णिमा, दक्षिण भारत में नारियल पूर्णिमा और नेपाल में इसे ‘जनेऊ पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है। इसी तरह पंजाब में इसे रखड़ी और हरयाणा में राखी भी कहा जाता है। रक्षा बंधन के इस पर्व को भारत के कई हिस्सों में श्रावणी के नाम से जाना जाता है।

Who tied rakhi to Lord Krishna?

शिशुपाल के साथ युद्ध में जब भगवान कृष्ण की ऊँगली पर घाव हो गया था, तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर उनके हाथ पर बाँध दिया। भगवान श्री कृष्ण ने इसे एक बहन की राखी के तौर पर लिया और द्रौपदी को वचन दिया की वो हमेशा उसकी रक्षा करेंगे। बाद में चीरहरण के समय, भगवान् कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा करके अपना वचन निभाया था।

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